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डॉ. अरविन्द कुमार पुरोहित (जोधपुर)


१. जोनाथन उड़ गो

जोनाथन
एक समंदर री चील हो
आपरे कुटुंब में
आपरे समाज रे साथे रेवतो
पण थोड़ो न्यारो हो
उन्ने उड़ान ऊं लगाव हो
उडान में वो
भगवान जोवतो
दूजी चीलां उड़ती
मछली पकड़ने री डिप्टी पूरी कर
पाछी आ जावती
ऊंघती रेवती
कदे दिन उगे ने भेर
डिप्टी माते चढों

जोनाथन एकलखुर्रो हो
वो एकलो उडतो
उड़ने रे आनंद रे सारु
वो प्रेक्टिस करतो
तरे तरे री उड़ानों री
साथिड़ा हंसता
बडील नाराज रेवता
मां रो जीव कलपतो
बापूजी समझावता
चील री डिप्टी कई व्हे
जोनाथन कोसिस करतो
सरवन कुमार हूअन री
पण उनरे मोने कोई कीड़ो हो
वो उन्नेतंग करतो
चंग चालतो
चील रो जमारो सीखन रे वास्ते
एक दिन वो बूयो गीयो
आपरे मकसद री तलास में

सबौं पेली तो वो सादी स्पीड ने साधी
पाछे करतब और कलाबाजियों
एक बार तो सागेड़ो पडियो
लहरों माते भाटो पड़े ज्यूँ
डूबतो हिम्मत हारग्यो
अरे ! किसी झंझट में पड़ ग्यो
चालो मछली पकड़ों
खांवों पींवों ने मस्त रेवों
पण वो कीड़ो भेर आडो फिरग्यो
(या कीड़े रे तो नोम व्हेला
वो खुद इज नई जावनों चावतों व्हेला )

जोनाथन पाछो अभ्यास में लाग गो
तेज -तेज , ऊपर - ऊपर
धके नाक री सीध में
एक दम नीचे चकरघिन्नी
आग रे गोले ज्यूं
सिद्द करली झीणी -झीणी मुदरी- मुदरी
थिर उड़ान
नीलकंठ गुलाची , कुंडल पाश
औरूं विहग चरखी रा अजब करतब साधीया
यूं करतों वो समंदरी चीलों रों
पैलो कलाकार , परथम वैज्ञानिक हुयो

सरवन कुमार न होणे री
तकलीफ़ लारे छोड़
वो मुलकतो हो आपरे आनंद में
मनावतों जसन
डर माते आपरी जीत रो
उं बखत घर री मां - बापू री साथिडों री
याद आई
चालूँ म्हारी खुसी बाटूँ
हिल -मिल ने जीवों ला
खुद आज़ाद व्होलां दूजों ने करोलां
उछब मनाओलां
आजादी रो आनंद रो

पण घरां स्वागत रे बंदनवार री जग्या
दुत्कार लटकती ही
बुजुर्गवार लगाई
सागेड़ी फटकार
समाज रा कायदा तोड़ ने
पाछो कीकर आयो है रे बीरा ?
उड़ने रो कई नूवो अर्थ लायो है ?
खाओ , पीवो ने वंश बढ़ाओ
जीवो जित्ता जीवो पाछे गरुड़ भगवान् री शरने जाओ
और कई व्हे ?
म्होने सिखावले कई ?

बाकायदा पंचायत बैठी
हुकुम सुणायो निर्वासन रो
समंदर री आथूनी चट्टानों माथे
जोनाथन जबर रोलों करियो
सारा ई गेला हू गीया कई ? नुकसोन थोरो इज व्हेला
पंचों रो फैसलों अटल हो
जिको जोनाथन सूं सरोकार राखेला
उनरो भी हुक्को पाणी बंद

जोनाथन उड़ गो
आथूनी चट्टानों सूं भी घणों आगे
पणीयावती आख्यां सूं लारेमुड़ मुड़
देखतो थको

२.राजस्थानी क्षणिकाएं: कीड़ी

कदाई कदाई एडो लागे
बावला डैनासोरों रे पगों नीचे
एक बापडी कीड़ी पिस जावेला

केवावत है के
कीड़ी हाथी ने मार सके
पण डैनासोरों रो कई पतो

कीड़ी ने
लूण ने खोंड इच्छा व्हे ज़िको मिल जावे
अगर वा हंसती रे :

कीड़ी सब रे साथे रेवे बिल मोयने
लैन लैन साथे चाले
गर कोई बिछुड़ जावे तो उन्नो कई व्हे ?

कीड़ी ज्यूँ पड़ पड़ ने चढ़े
पाची मिले बार बार
बिछुड़ ने


डॉ. अरविन्द कुमार पुरोहित
जोधपुर , दिनांक २९ मई , 2011

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